चंपारण का किसान आन्दोलन क्या है?

चंपारण का किसान आन्दोलन क्या है?

👉19 अप्रैल 1917 को चंपारण सत्याग्रह  शुरू हुआ यह आन्दोलन किसानों के हक़ के लिये बनाया गया था। इस समय वहां के जमींदारों ने और अंग्रेजों ने किसानों को बहुत परेशान किया। वहां के किसान अशिक्षित थे।

👉इसीलिए उनका शोषण हो रहा था वह किसानों की ज़मीन के 5% भाग पर नील की खेती करने के लिये उन्हें मजबूर करते थे और वह जितनी खेती करते थे उन्हें उस खेती की उतनी कीमत भी नहीं दी जाती थी।

👉लगातार नील की खेती होने से उनकी ज़मीन ख़राब हो रही थी और किसान अपनी ज़मीन पर कोई भी खाने की चीज पैदा नहीं कर पा रहे थे इस तरह उनके ज़मीन की पैदावार क्षमता कम होती जा रही थी जैसे राजकुमार शुक्ला जैसे कुछ नेता किसानों पर हो रहे अत्याचारों  से ना खुश थे और वे उनपर हो रहे अत्याचार को रोकना चाहते थे।

💟👉चंपारण आन्दोलन से जुडी कुछ बिशेष जानकारी 

👉चंपारण (बिहार) में किसानों पर कर ज्यादा बढा दिया गया था, खेतों में नील की खेती करवाई जा रही थी,जनता अशिक्षित थी । कर बढ़ जाने के कारण किसानों पर कर्ज का भार बढ़ रहा था। किसानों को केवल नील की खेती को करने के लिये मजबूर किया जाता था जिससे वे अन्य खाने योग्य फसल नही उगा पा रहे थे इसलिये किसान बहुत परेशान थे।

👉जमींदारों द्वारा यह तय कर दिया गया था कि खेत के जिस हिस्से में पैदावार सबसे अच्छी होती है उसी ज़मीन पर नील उगाई जाएगी और किसानों द्वारा जो भी फसल उगाना होता था उसको तैयार करने के लिये किसानों को कहा जाता था कि वो इस काम को ज्यादा से ज्यादा समय में करें।

👉किसानों से मेहनत ज्यादा कराई जाती थी और उनको मजदूरी कम दी जाती थी और जो  मजदूरी उन्हें प्राप्त होती थी उससे उनका दिन का खर्चा भी नहीं निकल पता था । इस तरह किसानों को अपना जीवन यापन करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था।

👉चंपारण आंदोलन का प्रमुख कारण यह था कि वहां के किसानों का जीवन दिन प्रतिदिन बिगड़ता जा रहा था और उनका जीवन जानवरों की तरह होता जा रहा था। गांधी जी इस प्रकार की तकलीफ में देखकर बहुत दुखी हुये।

👉गांधी जी को अंग्रेजों के खिलाफ जाने का मौका मिल गया महात्मा गांधी अफ्रीका से लौटने पर अंग्रेजों के विरुद्ध असहयोग आंदोलन और सत्याग्रह करना चाह रहे थे और उन्हें चंपारण कि यह स्थिति इस आन्दोलन को अंजाम देने के लिये बिल्कुल सही लगी। जनता के लोग गांधी जी के नेतृत्व को स्वीकार किया और इस प्रकार किसानों ने गाँधी जी का सहयोग किया।

💟👉गांधी जी द्वारा चंपारण सत्याग्रह में किये गए सुधार 

👉गांधी जी ने सबसे पहले स्कूल खुलवाया यह स्कूल बरहरवा लखनसेन गाँव में खुला था वहां के लोगो को साफ सफाई के लिये जागरूक किया और जात-पात के कारण हो रहे भेदभाव को मिटाया वहां के लोगों का आत्मविश्वास जगाया धीरे धीरे इस जिले में और भी स्कूल खोले गये।

👉दूसरा स्कूल मधुबन तथा तीसरा स्कूल पश्चिम चंपारण में खोला गया और इन स्कूलों को खुलवाने में संत राउत के अलावा भी कई नेताओं ने गांधी जी का साथ दिया जवाहरलाल नेहरू भी महात्मा गांधी के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चले।

💟👉चंपारण सत्याग्रह में गांधी जी की भूमिकायें 

👉जब महात्मा गांधी वहां के लोगों की सहायता करने पहुंचे तो वहां के जमींदार और यूरोपीय गाँधी जी से डर गए और उन्होंने मजिस्ट्रेट से उनके खिलाफ एक पत्र जारी करने को कहाँ तब वहां के मजिस्ट्रेट ने उनके खिलाफ जो पत्र जारी किया उसमे गांधी जी को चंपारण से तुरंत ही वापस लौटने को कहा गया था।

👉तब इन परिस्थितियों में भी गांधी जी ने उन मजबूर किसानों का साथ नहीं छोड़ा और वह उस आदेश को न मानते हुये अपने काम में लगे रहे और एक दिन उन्हें अदालत में पेश होने को कहा गया तो गाँधी जी वहां गये और वहां पूरी अदालत में सबके सामने चंपारण छोड़कर जाने से माना कर दिया और मजिस्ट्रेट से कहाँ कि मैं इस हालत में गरीब किसानों को अकेला छोड़कर कही नहीं जाने वाला आप जो करना चाहे कर सकते है पर मैं साथ देने आया हूँ और साथ दूंगा ।

👉इस तरह वहां की जनता को गांधी जी से जो मदद मिली उससे वहां के किसान और जनता ने भी गांधी जी का पूरा साथ दिया और उनके कहे अनुसार चलने लगी और इस तरह वह अपने हक़ पाने में विजय प्राप्त करने लगे।

👉यूरोपीय, गांधी जी और उनकी बनाई हुयी जनता से घवराने लगे और एक दिन पुलिस ने गांधी जी को जिले में अशांति फ़ैलाने के लिये गिरफ्तार कर लिया जब यह बात वहां के किसानों तक पहुंची तो किसानों ने तबाही मचाना शुरू कर दिया वे सभी अदालत और पुलिस स्टेशन के बाहर प्रदर्शन करने लगे गाँधी जी को रिहा करने की मांग करने लगे तब अदालत को बेबस होकर गाँधी को छोड़ना पड़ा।

👉अब ब्रिटिश सरकार को गांधी जी की ताकत का अनुभव हो गया था और इस तरह उन्होंने कृषि समिति का गठन किया और किसानों की परेशानी को सुना इस समिति में गांधी जी को भी शामिल किया गया कुछ दिनों बाद ही कृषि विधेयक पारित हो गया और इस तरह किसानों को राहत मिली और इस विधेयक में जमीनदारों की मनमानी भी ख़त्म करने की बात लिखी गयी थी और खेती के लिये अधिक पैसे की भी बात की गयी थी। इस तरह चंपारण सत्यागृह सफल हुआ।

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